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क्षणिकाएं / कुमार मुकुल
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तेरे बिना
यह जीवन
अमर हुआ जा रहा
सो लौट आना
देर-सबेर...।
तुम्हारी याद
बिल्कुल पागल है
बारहा सांकलें बजाती है।
हुक्मरां हैं हम
शर्म-ओ-हया की
औकात क्या -
जो पास आए।
हुक्मरां हुक्मरां से
लड़ते हैं
दो दुनिया तबाह होती है
शेष दो हुक्मरां ही बचते हैं।
हुक्मरां की
एक भौंह गीली है
कहीं कोई आशियां
जला होगा।
सीने पे रखा
पत्थर है वो
उसी ने सांसें
संभाल रक्खी हैं।
पत्थरदिली से
वाकिफ हूँ
हाँ, मेरी शख्सियत भी
दूब है।
सांसें
रूकती बस उसके लिए हैं
बाकी
सांसों का काम है चलना
तो,
चल रही हैं वे।
कहां हो तुम
आवाज तो दो
के आंसू अभी भी
हंसी से होड़ में
जीत जाते हैं।
बेलौस निगाहों में
कांपते
बुलंदियों के पठार
यह सौंदर्य
किसके पास है।