सम्भव है / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय
उस दिन तक हो सकता है ज़िन्दा नहीं रहूँ मैं
हो सकता है कि लटका दें मुझे पुल के पास
लटका रहूँ मैं यहाँ
और मेरी परछाईं कँक्रीट के पुल पर ...
और शायद हो सकता है
कि उस दिन के बाद भी ज़िन्दा रहूँ मैं
और चला आऊँ यहाँ
सूखे सफ़ेद बालों वाला सिर लिए ...
यदि ज़िन्दा रहा मैं उस दिन तक
उस दिन के बाद भी
तो शहर की दीवारों से सटकर
मैं गाऊँगा गीत और वायलिन बजाऊँगा
बूढ़ों के लिए ... बूढ़ों से घिरा
वैसे ही बूढ़े ... जैसाकि मैं
जैसाकि मैं ... आख़िरी जंगों में बचा
तब जहाँ भी नज़र डालूँगा मैं
हर जगह होगी हँसी और ख़ुशी
हर शाम होगी और ज़्यादा हसीन
सुनता रहूँगा मैं पास आते
नए क़दमों की आवाज़ें
नए-नए स्वर गाने लगेंगे नए गीत
1930
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय