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काराग़ार / डेनिस ब्रूटस / नरेन्द्र जैन

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शनिवार की दुपहर को
हमारे जिस्‍मों पर चढ़ा रहता था
समय का लेप

गोया घास में दबे कीड़ों के नमूने
दोपहर की चौंध में
ठहरे हुए होते हम
प्रतीक्षारत्‌
क़ैदियों से मिलने-जुलने के वक़्‍त

जब तक कि यकायक हाथ से
छीनकर बन्द कर दी गई किताब की तरह
नियत वक़्‍त के गुज़रते ही
ख़त्‍म होती सारी सम्भावनाएँ

और
हम
जान रहे होते
व्‍यतीत करने को पड़ा है
एक और सप्‍ताह ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : नरेन्द्र जैन