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हवा सँग रहूँगी / सविता सिंह
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आज रविवार है
आज किसी का इन्तज़ार नहीं करूँगी
आज मैं क्षमा करूँगी
आज मैं हवा सँग रहूँगी
उसके स्पर्श से सिहरी एक डाल की तरह
बस, अपनी जगह रहूँगी
अलबत्ता थोड़ी देर बाद
पास ही तालाब में तैरती मछली को
देखने जाऊँगी
जानूँगी, वे क्या पसन्द करती हैं
तैरते रहना लगातार या सुस्ताना भी ज़रा
मैं उनकी आँखों में झाँकूँगी
बसी उनमें सुन्दरता के मारक सम्मोहन को
शामिल करूँगी जीवन के नए अनुभव में
आज पानी के पास रहूँगी
उसकी गन्ध को भीतर
उसके आस-पास के घास-पात के बहाने
भीतर के खर-पात देखूँगी
आज रविवार है
आज किसी का इन्तज़ार नहीं करूँगी
इस धरती पर रहूँगी
उसके तापमान की तरह