किसी और रँग में / सविता सिंह
यहाँ कहाँ से आती हुई आवाज़ है और किसकी
पीली पड़ी देह की रुग्णता हवा में ज्यों मिली हुई
आकर अपना पीलापन जो छोड़ जाती है
कितना कुछ महसूस करने में है
एक और देह की उन उदासियों को
वर्षों जो उससे लिपटी रहीं
जिन्हें कभी जाना था
किधर से यह आवाज़ आती है
अब बस करो, कहीं ठहरो एक जगह
मत मिलाओ सारी ख़ुशबुओं को एक में
जानना कितना मुश्किल हो जाएगा फिर
कौन सा स्पर्श किसका था
शब्दों पर से ऐतबार न उठे
इसलिए याद रखना ज़रूरी है उसका कहा हुआ
प्रेम में मरना सबसे अच्छी मृत्यु है
और यह भी कि सम्भोग भी आखिर एक मृत्यु है, छोटी ही सही
जिसके बाद मनुष्य का दूसरा जन्म होता है
कई ऐसी ही बातें लगभग सांसों पर चलती हुई
आत्मा से उतारी गई होंगी उसकी ही तरह
किधर से फिर यह कौन सी आवाज़ आती है
जिससे पहचानी जाएगी एक स्त्री
जिसका पीला रँग बदलने से मना करता है
किसी और रंग में ।