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सुरूज़ आज मांगय अंजोर / रघुवीर अग्रवाल ‘पथिक’

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ये अजब तमाशा, सूरज आज मांगय अंजोर
गंगा हर मराय पियास अउर मांगै पानी ।
या मांगै कहूँ उधार पाँच रूपिया कुबेर
रोटी बर हाथ पसारै, कर्ण सरिख दानी ।1।

बस उही किसम जब जेला कथै अन्न दाता
जो मन चारा दे, पेट जगत के भरत हवै ।
तुम वो किसान के घर दुवार ल देखौ तो
वो बपुरा मन दाना दाना बर मरत हवै ।2।

जे तनह, आपण पसीना ले मोती उगाय
दू गज पहिरे बर कपड़ा नइये वो तन में।
जेकर जिनगी अतका अमोल जतका अमरित
बिपदा के जहर समागे वोकर जेवन में ।3।

ओला दाबेहे चिंता के साइघो पहाड़
कइसे वो लड़का मन के सुक्खा पर भरै।
कइसे लेवै बइला भंइसा अउ बीज भात
कइसे लागा बोडी मन ल वो अदा करै ।4।

महंगाई छूवै आसमान, घर सुक्खा हे।
कोठी में नइये गेहूं धान घर सुक्खा हे।
कइसे देवे लेव्ही, लगान, घर सुक्खा हे।
वो कहां जाय, तज दे परान? घर सुक्खा हे ।5।

इन दू पइली में धान पाय बर पांव परै ।
उन रूपिया में सइघो सइघो सन्दूक भरै।
इन लहू पसीना रोज बहावै जीये बर।
उन पानी जइसे नोट बहावै पीये बर ।6।

जइसे कइथे दुब्बर बर होथय दू आषाढ़।
बस उही किसम चउमास इकर बर बनिस काल।
बपुरा किसान के लहू मास बर दउड़ जथे
बधवा जइसे गुर्रावत ये बिक्कट दुकाल ।7।

येमन हरदम तइयार पसीना गारे बर
तइयार हमर धरती के रूप संवारे बर।
हम ईकर दुख पीला ल थोरिक दूर करन
इ मर मिट्टी दुनिया के दुख उबारे बर ।8।