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ये बच्चे हैं / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

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ये बच्चे हैं
इनके मन के थाले में
चाहे जो रोपो

यदि रोपोगे
शूल समय के
तो भी छतनार बनेंगे
और सीखकर दुनियादारी
दुनिया को खार करेंगे

ये बच्चे हैं
पथ साँच दिखाओ इनको
इनपर मत कोपो

कोमल मन है
बचपन भी है
उचित दिशा बस देनी है
मकर चाँदनी जैसी उजली
हँसी इन्हीं से लेनी है

ये बच्चे हैं
बंधु ! विषैली इच्छाएँ
इन पर मत थोपो


छिपे हुए हैं
अद्भुत न्यारे
बाहर लायें इनके गुन
रोशन कर दें नये दिनों को
हँसने लगें सभी के मन

ये बच्चे हैं
ईश्वर के वरदान सदृश
सद्गुण मत गोपो