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पुनर्रचना / निकिफ़ोरॉस व्रेताकॉस / अनिल जनविजय
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अपनी कविताएँ लिखते हुए
मैं यह कोशिश करता हूँ
कि अपने समय
और उसकी प्रीति को
मैं शब्दों में भर दूँ ।
सूरज, चान्द, सबकुछ
झूलते हैं मेरी कविता में वैसे ही
जैसे घूमते हैं इस ब्रह्माण्ड में ।
मैं कोशिश करता हूँ
एक सम्पूर्ण दुनिया की रचना करने की
बिना खोए उसका कोई हिस्सा
वैसी ही दुनिया बनाने की
जैसी वो मलिन होने से पहले थी
जब कैन ने हाबिल की हत्या की थी ।
मैं यह कोशिश करता हूँ
अपने शब्दों में
घास और पानी उड़ेलने की
उनमें चुप्पी और मुस्कान का रहस्य
भरने की ।
रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय