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जब भी लिखूँगा / मनोज तिवारी

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जब लिखना बहुत जरूरी हो जाएगा
तो प्रेम लिखूँगा
कार्तिक मास में
गंगा नहा कर
लिखती थी जैसे माँ
बेल पत्र पर 'ओऽम'
रंग - बिरंगी तितलियों के पंखों पर
नदियों व पहाडों पर
फूल - पत्तियों पर
और चील के डैनों पर
अंकित कर दूँगा
प्रेम ।
नहीं लिखूँगा कभी
बिछोह
प्रेम ही तो है मेरे
निर्निमेष पलकों पर ।