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तज्ज़िया / शहराम सर्मदी
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आज जिस तनाज़ुर में
काएनात को देखा
हर तरह मुकम्मल थी
पहले इतनी शिद्दत से
कब ख़याल आया था
इस क़दर अकेला हूँ