भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कार-ए-जहाँ दराज़ है / शहराम सर्मदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:40, 8 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहराम सर्मदी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई ऐसा शग़्ल तो हो ज़ीस्त करने का
जिसे वाजिब सा कोई नाम दे दें
ख़्वाह इस में क़िस्सा-ए-रंग-ए-परीदा की
कोई तमसील ढूँडें या किसी इक याद को
वो इस्म दे दें जो गुज़रते वक़्त का
कोई भला उनवान तय पाए
कोई मिसरा कहें ताज़ा जो अपने आप में कामिल नज़र आए

अगर ऐसा नहीं मुमकिन तो कोई क़हक़हा
लम्बा सा पूरा क़हक़हा फिर
हम किसी इक शग़्ल में मशग़ूल रहना चाहते हैं