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मुक्त-कंठ / महेन्द्र भटनागर
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- कौन है
- जो तुम्हें सच
- बोलने नहीं देता ?
- कौन है
- जो तुम्हें
- ज़िन्दगी की असलियत
- खोलने नहीं देता ?
- कौन है हावी
- तुम्हारी चेतना पर ?
- किसने
- बाँध दी हैं शृंखलाएँ
- अन्तःप्रेरणा पर ?
- कौन है
- किसने
- दबोच रखा है, भला
- तुम्हारा गला ?
- किसने
- चेहरे पर अंकित
- रेखाएँ घुटन की,
- डबडबायी आँखें
- डबडबायी आँखें
- चीखती —
- निरीहता मन की !
- चेहरे पर अंकित
- कब तलक
- रहेगा सूखा हलक़ ?
- कब तलक
- आवाज़ —
- भर्रायी हुई आवाज़
- बोलती है,
- कितना स्पष्ट
- सब बोलती है !
- आवाज़ —
- नहीं,
- यह बंध शिथिल हो,
- हर धड़कन पर शिथिल हो !
- कंठ मुक्त हो,
- उन्मुक्त हो !
- बोलो —
- जकड़न टूटेगी !
- शब्द-शब्द से
- रोशनी फूटेगी !
- नहीं,