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ऐसा तान छेड़ो / प्रभात कुमार सिन्हा
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कुछ ऐसा तान छेड़ो संगीतकार कि
नदियां अपने आश्रय पर पहुंच शान्त हो जायं
रास्ते में गंभीर पहाड़ों की
पगथलियां धोती जायं नदियां
सागर अथाह सम्पदा का स्वामी होते हुए
कभी अर्थार्जन की लालच नहीं करता और
धरती पर श्रम-जल में ही
ऊब-डूब करती हैं सम्पदाएं
इस भूखण्ड पर
श्रम-जल को लूटने वाले दस्यु
कुपित फणिधर बन रेंग रहे हैं
शीलधर नहीं हैं दस्यु
असंख्य आशंकाओं से घिरे दस्यु
थरथरा रहे हैं
बस ऐसा ही तान छेड़ो संगीतकार कि