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बहादुर / मुकेश प्रत्यूष

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बहादुर रातभर मेरी गली में
इस छोर से उस छोर तक टहलता रहता है
-लाठी पटकता
-सीटी बजाता
-आवाजें देता हुूआ

मैं नहीं जानता :
जागते रहने के लिए
उसकी दी हुई आवाज तब कितने लोग सुनते हैं
जब
पेबंद लगी रजाई
या झड़ चुके कम्बल के हटते ही
हो खतरा हडि्डयों में ठंढ़ के समा जाने का
या मंद-मंद बहती बयार के संग आंखों में आने वाला हो
-कोई सपना
मैं नहीं जानता

मैं नहीं जानता :
दोपहर से शाम तक जिनके बच्चे
दरवाजे पर बैठी बाट जोहती मां के आंचल से
रोटी के लिए लटक-लटक कर पोंछते हैं रेंट
और
सो जाते हैं चूल्हा जलने से पहले
 
रात भर में पूरी तरह खलास होकर
सुबह-सुबह निकलते हैं जो घर से
खाली तसले की तरह ढनढ़नाते हुए
वे
किस चीज की हिफाजत के लिए
आपस में करते हैं चंदा
हर महीने की पहली तारीख को
मैं नहीं जानता

मैं जानता हूं तो सिर्फ इतना
बहादुर रहेगा जब तक मेरी गली में
नहीं समझ पायेगा-
सांझ ढलने और घर लौटने का समीकरण
नहीं देख पायेगा-
कोई सपना
और नहीं जान पायेगा-
सूर्योदय के वक्त
आसमान का रंग कैसा होता है ?