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रख ज़रा इत्मिनान, बदलेगा / अनुज ‘अब्र’

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रख ज़रा इत्मिनान, बदलेगा
एक दिन हुक़्मरान बदलेगा

देखना ऐन फ़ैसले के दिन
अपने सारे बयान बदलेगा

जबकि सारा वजूद है उससे
ज़िद है अब इत्रदान बदलेगा

उसकी जादूगरी से वाक़िफ़ हूँ
वक्त पर सबका ध्यान बदलेगा

तीर सारे बदल रहा है अभी
बाद में वो, कमान बदलेगा

अब्र बदलेगा तब भविष्य तेरा
जब तेरा, वर्तमान बदलेगा