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सबब इतना है इस जिंदादिली का / अनुज ‘अब्र’
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सबब इतना है इस जिंदादिली का
नहीं छोड़ा कोई मौका खुशी का
ज़रा शो कीजिये कमज़ोर ख़ुद को
तमाशा देखिये फिर आदमी का
जो ख़ुद ही दूसरे पर मुनहसिर है
बताओ क्या करे इस चाँदनी का
नदी झरना समन्दर धूप बारिश
यही तो फ़लसफ़ा है ज़िन्दगी का
नज़र आता है सहरा भी समन्दर
अजब आलम है अपनी तिश्नगी का
किसी के वास्ते है इश्क़ मज़हब
किसी के वास्ते जंजाल जी का
पिरोये शेर हैं कुछ यूँ ग़ज़ल में
हो जैसे काम साड़ी पर जरी का