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सहारा / महेन्द्र भटनागर

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नहीं साथ मैं चाहता हूँ तुम्हारा,
भले ही मिटे ज़िन्दगी का सहारा !

जिये यदि किसी की दया माँग
तो क्या जिये ?
कभी भूल चिंता करूंगा न
अपने लिये,
ज़रा भी न अफ़सोस, चाहे बुझे यह
गगन में चमकता अकेला सितारा !

हँसूंगा न जीवित रहूंगा
सफलता बिना,
निखरता मनुज का न जीवन
विफलता बिना,
भरोसा बड़ा ही मुझे है कि बहती
हुई यह रुकेगी नहीं प्राण-धारा !