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जे माटी के तिलक लगाही / चंद्रिका मढरिया

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घाम जड़ बरसात मं उघरा-उखरा जांगर रंग बोहाही
ये माटी बोकारे संग देही जे माटी के तिलक लगाही

भरे जवानी गजभर छाती कुरिया मं खुसरे चुपरात तेल
करवट लेवड़ घलो जियानै ले दे के पेल ढपेल
आज नहीं ते काल नहीं ते परसों खचित बो बोजाही

ता-ता थइय्या ले बल बइहां खार पछीना अंग ल धोले
महका के महर-महर मुलुक सरी समाज समोले
देख तहां माटी संगे खेले फेर कइसे कोनो हाथ लजाही।

जबाना के हवा बदलगे लोहा ल काट त अब लोहा
कुभकरन नइ अलथे कलथे कतको पार ले सुख्खा दोहा
जांगर चोर जगाएं छेंके परही फोकट के बरवाही।

पोथी के भरोसा बइठे मूरचा के जांगर ह कानी
मिहनत जांगर तोर धरम ये दिन बादर बरसहीच पानी
तोर संग नहीं ते अउ काकर संग इन्द्रदेव खेलही हरदाही।

हरियर हरियर सोनहा सोनहां खार खेत अन धन ओनहारी
रंग बिरंग फूल फार लदाए अइसन काकर मर फुलवारी
चार चार भोंभरा बरसत अंगरा तभो सूरज ल जे बिजराही।