भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिलना / प्रकाश

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:45, 14 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह उसमें जाकर उससे मिल गया था
उसे उसमें थोड़ा और नीचे उतरना था

वह उसके कुएंँ की मुण्डेर पर अटककर
थोड़ा और गहरे मिलने को उत्सुक
नीचे गहराई में देखता था

वह मुण्डेर से गहराई में कूदकर
उससे और गहरे में मिल जाता था

विस्फारित वह देखता था
वहाँ एक के नीचे एक मुण्डेर का क्रम था
वह अनन्त में गिरता जाता था
उससे मिलता जाता था

उससे मिलते हुए वह सदा मुण्डेर तक ही पहुँचता था
वह वहाँ से फिर कुएँ की गहराई में झाँकता था !