ज़िन्दगी / सुखचैन / अनिल जनविजय
तुम मुझे इस तरह भर देती हो ज़िन्दगी
आसमान को जिस तरह भर देती है रात
खाली आँगनों को जिस तरह भर देती है बच्चों की हंसी
तप रही ख़ुश्क मिट्टी को जिस तरह भर देती है
बरसात की पहली बारिश
पेड़ को जिस तरह भर देती है हरियाली
आदमी को जिस तरह भर देती है औरत
औरत की गोद को जिस तरह भर देता है बच्चा
परेशान अकुलाहट से भरे आदमी को
जिस तरह भर देती है नीन्द
मेले को जिस तरह भर देती है रौनक
अकेलेपन को जिस तरह भर देते हैं दोस्त
ख़ाली जाम को जिस तरह भर देती है शराब
अल्हड़ लड़के को जिस तरह भर देती है लड़की
खाली घर को जिस तरह भर देती है महफ़िल
शून्य को जिस तरह भर देता है ब्रह्माण्ड
मनुष्य के अज्ञान को जिस तरह भर देता शब्द
अन्धेरे को जिस तरह भर देता है चिराग
मनुष्य की तड़प को जिस तरह भर देती है शाइरी
यूँ ही तुम भी मुझे भर देती हो ज़िन्दगी