भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वाह रे मनखे तय / किशोर कश्यप
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:48, 15 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किशोर कश्यप |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मनखे मन हा मनखे ला मारे के
उपाय खोज डारिन हे
परगति के नाव ले लेके
मनखे के दुरगति कर डारिन हे
बड़े बड़े घर बनाइन
अब जगा होवत हे कम
जीये बर आनी बानी के दवा त
मनखे मारे बार हे बम
अतका बड़ पीरिथवी ला
छोट कुन कर डारिन हे
डोंगरी ला कोन पूछय
चंदा मां पांव मड़हाइन हे
चिरी साही मनखे
आज हवा में उड़हावत हे
पानी मां मंगर साही
जिनगी पहावत हे
अरे मनुख तय महाभारत के संजय साही
घर बइठे झगरा देखत हस
परदेस मा होवत हे क्रिकेट
अउ तय इहां से मंजा लेवत हास
सबो बात तो बने बने
फेर काबर तय इंसानियत ल खोवात हस
मनखे मनखे बाटि क बांटा होयके
देव धामी ला घलो बांट दारत हस