भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आबादी कम करौ, रुख राई लगावौ / माधुरीकर
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:36, 16 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माधुरीकर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatChhatti...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तरिया के पार मा
एको ठन रुख राई नइ ए
गांव मा लइका-पिचका मन
गाय-गोरू कस खरखा खोइर जोरीयाथैं
दाई ददा आस रखिन हैं
मोर लइका मोला कमा के खवाही
फेर लइका ह अपन पेट ल भरे नइ सकिस
त दूसर ला का खवाही
डारा पाना के तो बाते ला छोड़
अब तो घास बिना धरती माई ह दुबरात जाते हे
आबादी कम नइ होही
त कुछु साल मा हवा वर घलो रासन कारड बनाय वर परही
आक्सीजन ए सलिंडर घलो पीठ मा लाद के चले वर परही
डोकरी दाई बबा आस करे हे
नानी-पोती मन ला खेलावों
ओ मन तुंहर खेलौना नो हे
ओमन ल जिए के रद्दा वतावौ
एक घर मा एक झिन लइका
पांच ठन रुख राई लगावों
दीदी मन आबादी ला कम करौ
भैया मन रुख राई मन ला बढ़ावौ
अकाल-दुकाल बह कभु नइ होय
सुख के वंसी बजावौ ।