भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज भी है शेष है / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
उसकी चपल आँखों की गति,
मेरे लिए प्रश्न है आज भी।
ध्यान नहीं, मुझे देखना दावा था,
या उसका वचन केवल छलावा था।
मेरे थे अपने ही भोलेपन,
वह किसी और में था मगन।
किन्तु आज भी मुझमे शेष है,
वही निष्ठा- प्रेम विशेष है।
टूटेगा कभी तो उसका भरम,
विजयी होगा मेरा ही धरम।
मेरे भीतर भी ईश्वर जीवित है,
यह मिथ्या नहीं ,बल्कि सुनिश्चित है।
शत्रुता अच्छी मित्रों ने निभाई
कटार लिये खड़ी मेरी परछाई।
-0-