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खेत ला बिसार झन / नरेन्द्र देव वर्मा

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खेत ला बिसार झन, गांव ला उझार झन,
फांद झन गाड़ी ला जवइया,
भुंइया के मांग उजरइया।
जनम भर खेत खार आये।
माती अउ चिखली मा सनाये,
बादर लाल गीद ते सुनाये,
माटी के गोहार सुन, मया ला बिसार झन,
धान, गहूं चना के जगइया।
मानेब मैं तोर भाग फूटिस,
अउ बजर तोरे ऊपर टूटिस,
करजा के बाना हर छूटिस,
जांगर बिसार झन सोच झन बिचार झन,
रात दिन काज के करइया।
तै नइते कौन गेड गाही,
कारी ला कोने दुलराही
भूरी हर कइसे पगुराही,
भुंया ला तियाग झन, नागर ला उतार झन,
कांवर ला काँध माँ धरइया।
करजा के पूरा मा बोहागे,
बाढी माँ कोठी हर सिरागे
पानी बिना धान हर झुखागे,
करजा ला तै झन गुण, सहार के तै सुन,
करजा मा बइला ढिलवइया ।