भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खेत ला बिसार झन / नरेन्द्र देव वर्मा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:29, 21 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र देव वर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
खेत ला बिसार झन, गांव ला उझार झन,
फांद झन गाड़ी ला जवइया,
भुंइया के मांग उजरइया।
जनम भर खेत खार आये।
माती अउ चिखली मा सनाये,
बादर लाल गीद ते सुनाये,
माटी के गोहार सुन, मया ला बिसार झन,
धान, गहूं चना के जगइया।
मानेब मैं तोर भाग फूटिस,
अउ बजर तोरे ऊपर टूटिस,
करजा के बाना हर छूटिस,
जांगर बिसार झन सोच झन बिचार झन,
रात दिन काज के करइया।
तै नइते कौन गेड गाही,
कारी ला कोने दुलराही
भूरी हर कइसे पगुराही,
भुंया ला तियाग झन, नागर ला उतार झन,
कांवर ला काँध माँ धरइया।
करजा के पूरा मा बोहागे,
बाढी माँ कोठी हर सिरागे
पानी बिना धान हर झुखागे,
करजा ला तै झन गुण, सहार के तै सुन,
करजा मा बइला ढिलवइया ।