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जागव / नीलकंठ देवांगन

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होगे बिहिनिया सगी मोर
सूते के बेरा नइये तोर।
बगरिसे सूरूज़ अंजोर
गानवा मं जम्मो गली खोर॥

अंधवा वर जइसे ये दुनियं आंधियार है
देश वर उड़सने सब अपपढ़ गंवार हे
पढ़ लिख लव कहना मानव मोर
सूते के बेरा नइवे तोर॥

जांगर के टूटत ले तुमन कमाथव
पढे लिखे नइयव तेखर सेती गाथव
अब्बड़ हावय ठगइया चहूं ओर
सूते के बेरा नइये तोर॥

बात बताइन हे ऋषि मुनि ग्यानी।
अब कोनो झन रहव अप्पढ़ अग्यानी।
चिरई चिरगुन के होवत हावय शोर।
सूते के बेरा नइये तोर॥

कुंआ के मेचका कस तू मन धंधाये हव।
देश दुनिया ले निचट तुमन अलगाये हव
झांक के देखव दुनिया ला संगी मोर
सूते के बेरा नइये तोर॥

सोचे अउ समझे के दिशा ला तुम बदलव
समय के संग चलके रद्दा नवा गढ़व
अपन हालत ले उबरव संगी मोर
सूते के बेरा नइये तोर॥

चेथी के आंखी ला आघु डहर लावव
अतका दिन ले सूते रेहेव अव तो बने जागव
अपन आप ला पहिचानव संगी मोर
सूते के बेरा नइये तोर॥