बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ / पीसी लाल यादव
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, घर-घर अलख जगाओ रे।
नोनी आवय सिरजनहार, येला जानो अउ जनाओ॥
कोन ह कहिथे बेटा ले?
बेटी मन कमजोर हे?
डेरी-जेवनी आँखी जइसे
दूनो के मोल सजोर हे।
बेटी जिनगी के जोती ये, बेटी के मान बढ़ाओ रे।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, घर-घर अलख जगाओ रे॥
बेटी करे सृष्टि के रचना
बन के जग में महतारी।
दया-मया अँचरा म बांधे
बन ममता के फुलवारी॥
महतारी के गर मसक के, ममता बर झन ललवाओ रे।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, घर-घर अलख जगाओ रे॥
कोख पलत बेटी मन के
भू्रण हतिया महापाप ये
अइसन करम करे तेन पापी
कइसन ओ माई-बाप ये?
जिनगी के अंधियारी हर के, उजियारी बगराओ रे।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, घर-घर अलख जगाओ रे॥
पढ़-लिख बेटी आगू बढ़के
नवा-अंजोरी लावत हे।
एवरेस्ट के सिखर चढ़के
झंडा-तिरंगा लहरावत हे॥
किताब कापी कलम कम्प्यूटर, बेटी ल घलो धराओ रे।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, घर-घर अलख जगाओ रे॥