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लोभ-लालच के लासा / पीसी लाल यादव
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छिन म तोला छिन म मासा
जिनगी के अजब तमासा।
माया-मोह म चटके मनखे
लोभ-लालच के लासा॥
भरे हवय भंडार भरपूर
तभो सुख संतोष ले दूर।
डामर कस टघलत हवै
अहंकार म चूर-चूर॥
मौका मिलत देर नहीं-
कपटी फेंके कपट के पासा।
जेखर करा जतके जादा,
ओखर करा ओतके बाधा।
को जनी कतका रपोटही
नई बाँचे का घलो खादा?
समझाये कुछु समझय नहीं
का पखार का गाँसा?
मनुख जोनी अमोल हीरा,
तभो बनगे कोसा कीरा।
अपने अपन म मगन हे
नई हरे पर के दुख-पीरा
कतको करले जतन जोखा
काल के हाथ में नासा।