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कभू नई बिसराँव / पीसी लाल यादव

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जिनगी मिले उधार ल, कभू नई बिसराँव।
तोर दया-उपकार ल, कभू नई बिसराँव॥
ओ हितवा रे, ओ मितवा रे।

ये जिनगी बर तहीं सुरुज, तहीं उज्जर चंदा।
घाती-पापाी ल उबारय, उही आवय गंगा॥

तप-तियाग-उबार ल, कभू नई बिसराँव।
तोर दया-उपकार ल, कभू नई बिसराँव॥

खुद जहर-महुरा पीके, मोला अमरीत पियाए।
मोर कसूर ल मुड़ी बोह के मोला तैं जियाए।

तोर मया-उपकार ल, कभू नई बिसराँव।
तोर दया-उपकार ल, कभू नई बिसराँव॥

घाम सहि पेड़ रद्दा-रेंगइया ल देवय छाँव
पथरा सहि फर देवय, तेखरे सेती अमर नाँव।

पिरित फर गुदार ल, कभू नई बिसराँव।
तोर दया-उपकार ल, कभू नई बिसराँव॥

बर-बर के दिया बपुरा, जग ल देवय अंजोर।
फेर तरी के अंधियारी के लेवय कोन सोर?

अपन दिल के पुकार ल, कभू नई बिसराँव।
तोर दया-उपकार ल, कभू नई बिसराँव॥

पर-बर बरसे बादर दानी, पर बर बोहे नंदिया।
पर बर सिरजावय हितवा, मया के घरघुंदिया॥

मया अमरीत धार ल, कभू नई बिसराँव।
तोर दया-उपकार ल, कभू नई बिसराँव॥