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कुहरा छाया है / राजेन्द्र गौतम
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बूढ़े बरगद पर छाया है
पूरी बस्ती पर छाया है
कुहरा छाया है ।
झुनिया ने था रखा थान पर
जो छोटा दियरा
चिरता कितना उससे तम का
पाथर-सा हियरा
टूटे छप्पर पर छाया है
सूने आँगन में छाया है
कुहरा छाया है ।
राजपथों पर तो दीपों की
मालाएँ होंगी
अन्धकार से अनजानी
मधुशालाएँ होंगी
धूसर पगडण्डी पर लेकिन
गिद्धों के पँखों-सा काला
कुहरा छाया है ।
शीश-महल में देख रहे जो
महफ़िल का मुज़रा
नहीं पूछते इस रधिया से
दिन कैसे गुज़रा
भारी पलकों पर छाया है
धँसती आँखों पर छाया है
कुहरा छाया है ।