कहाँ वह बिन्दु
जिस पर मैं टिकूँ ?
कहाँ वह क्षण
जिसमें मैं रुकूँ ?
धारा में
मेरा परिचय बह गया है ।
शून्य कभी दर्शन था,
अब गणित हो गया है ।
कहाँ वह बिन्दु
जिस पर मैं टिकूँ ?
कहाँ वह क्षण
जिसमें मैं रुकूँ ?
धारा में
मेरा परिचय बह गया है ।
शून्य कभी दर्शन था,
अब गणित हो गया है ।