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सूरज की ख़रीद / दिनेश्वर प्रसाद
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सूरज बिकाऊ है।
ख़रीदोगे?
खिड़कीबन्द
कमरों के वासियो !
तुम्हारी जेब का
अन्धियारा पैसा है ।
बाहर निकलकर
उसे खरचोगे?
दहकता दाहक
सूरज
ख़रीदोगे ?
(12 जनवरी 1965)