भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूरज की ख़रीद / दिनेश्वर प्रसाद

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:58, 27 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश्वर प्रसाद |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूरज बिकाऊ है।
ख़रीदोगे?
खिड़कीबन्द  
कमरों के वासियो !

तुम्हारी जेब का
अन्धियारा पैसा है ।
बाहर निकलकर
उसे  खरचोगे?

दहकता दाहक
सूरज
ख़रीदोगे ?

(12 जनवरी 1965)