भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन / दिनेश्वर प्रसाद
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:26, 2 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश्वर प्रसाद |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जीवन !
तुम्हें आज तक छलता रहा
एक दिन आएगी मौत
जब दबे पाँव
कौन करेगा प्रश्न
मौन करने वाले,
कौन कर देगा
निरुत्तर मुझे ?
तुम्हीं तो, तुम्हीं तो
जीवन !
(जून, 1992)