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सारे बंधन तोड़ सकूँ मैं / शैलेन्द्र सिंह दूहन

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खुद ही खुद का अन्वेषक बन
आप अनल का उद्घोषक बन।
मूक दबों की पीड़ा से अब
तूफानों को मोड़ सकूँ मैं
सारे बंधन तोड़ सकूँ मैं।
रिसते छाले ढाल बना कर
चीखों को भूचाल बना कर,
मजदूरों के स्वेद कणों से
धार समय की मोड़ सकूँ मैं
सारे बन्धन तोड़ सकूँ मैं।
उद्गारों में चिंगारी भर
पौरुष वाली उजियारी भर,
फुटपाथों के भूखों खातिर
शीशे के घर फोड़ सकूँ मैं
सारे बंधन तोड़ सकूँ मैं।