भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लाल / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:40, 5 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |अनुवादक=रामशंकर द्व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
किसे कहूँ लाल ?
तुम्हें !
मेरा लाल रँग तो तुम हो !
आज समझ पाया हूँ
सूर्य डूबते-डूबते कैसे
रँगीन कर जाता है
नदी तट से घिरी
वनभूमि को ।
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी