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फूल गाछ / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी
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वह आएगी,
आएगी ही आज वह
यही बात कह रहा है गन्धराज
यही बात खिली हुई है स्थल पद्म गाछ में
ढलती हुई धूप से
आँखें हटाते ही
देखता हूँ,
यह क्या ! धूप तो नहीं है
स्वयं ही फूलगाछ होकर
बरामदे के पास
हंसते हुए वह खड़ी हुई है !
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी