भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इतिहास बोध / शशिप्रकाश
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:20, 8 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशिप्रकाश |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavi...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पत्थर को धोता है पानी,
पानी को धोती है हवा
और फिर सुगन्ध
हवा को पवित्र करती है ।
हृदय को धोते हैं आँसू
आँसू को स्मृति बनाते हैं विचार,
विचार को शुद्ध और प्रामाणिक
बनाता है पसीना ।
पसीने को सार्थकता
मिलती है सृजन से,
सृजन को सार्थकता
मिलती है जीवन से
और जीवन को
धो-पोंछकर साफ करना होता है
रक्त से ।
(जनवरी, 1996)