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चवरी / कुमारेंद्र पारसनाथ सिंह

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चवरी आरा के पास बसी एक बस्ती का नाम है, जिसमें ज़्यादातर हरिजन और दलित वर्ग के शोषित-दमित-प्रताड़ित लोग रहते हैं। कुछ दिन पहले पुलिस ने धनी किसानों के साथ मिलकर उन पर 'छापा' डाला था, क्योंकि वे लोग मज़दूरी की एवज़ में भर-पेट खाना माँगते थे। उन्होंने पुलिस के धावे का प्रतिरोध किया, पर सशस्त्र पुलिस के धावे के सामने वे कितना टिक पाते !)

कभी चन्दना — रूपसपुर
कभी चवरी !
यह चवरी कहाँ है ?

                भोजपुर
                यानी बाबू कुँवर सिंह का ज़िला शाहाबाद
                यानी दलितों के पैग़म्बर महात्मा गान्धी के
                हिन्दुस्तान
                यानी अब इस नए समाजवाद में —
                आख़िर कहाँ है चवरी ?

जलियाँवाला बाग़ से कितनी दूर —
वियतनाम के कितनी क़रीब ?

                    कोई भी ठीक-ठीक नहीं बोलता !
                    फिर, तू ही बोल — कहाँ है चवरी ?

तूने तो देस-बिदेस के ड्राइँगरूमों में सजे
किसिम किसिम के आइनों में झाँका होगा —
कहीं चवरी को भी देखा ?

जो सड़क चवरी से निकलकर दिल्ली जाती है
उसका दिल्ली से क्या वास्ता है ?
चवरी की हरिजन टोली के नौजवानों के धुन्धुआते पेट से
खींच कर लाई गई अन्तड़ियों की लम्बाई क्या है ?
(कुछ पता है वे कब फिर पलीता बन जाएँगी !)
००

चन्दना-रूपसपुर से चवरी पहुँचने में
समय को कितना कम चलना पड़ा है !
और कितनी कम बर्बाद हुई है राजधानी की नींद
पुलिस के 'ख़ूनी', और न्यायपालिका के 'बूचड़ख़ाना'
                                          बन जाने में !
००

जिसे कहते हैं
               मुल्क़
               प्रशासन
               न्यायपालिका
उसका रामकली के लिए क्या अर्थ रह गया है ?
रामकली ग़ुम हो कर सोचती है
और उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा है ।
लाली गौने आई है
और लालमोहर उससे छीनकर मिटा दिया गया है —
वह समय के सामने
अकेले, बुत बनी रहती है — उसकी बेबाक आँखों के लिए
दिन और रात में कोई फ़र्क़ नहीं रह गया है !
दीना और बैजू और रघुवंश की छाँह के नीचे
जनतन्त्र
किसी बड़े मुजरिम-सा
सिर नीचे किए बैठा है
और कहीं कुछ नहीं हो रहा है !
००

मज़बूरी का नाम महात्मा गान्धी है;
फिर, भूख और तबाही और ज़ोरो-ज़ुल्म का क्या
                                           नाम होगा?
क्या नाम होगा इस नए जनतन्त्र और समाजवाद का ?
नक्सलबाड़ी या श्रीकाकुलम बहुत छोटा नाम होगा !
फिर, सही नाम क्या होगा ?
००

तुझे
मुल्क़ ने जाने-अनजाने
जी-जान से चाहा है
तेरी मुस्कान को तरोताज़ा रखने के लिए
(ख़ुद भूखा रहकर भी)
एक-से-एक ख़ूबसूरत गुलाब पैदा किए हैं !
तेरे फूल को
(जब तू नहीं रहेगी)
गोद में ले लेने के लिए
हरी-से-हरी घास उगाई है !
और तेरे होठों को चूमने के लिए
बड़ा-से-बड़ा जानदार आइना तैयार किया है !
फिर क्या कमी रह गई है
कि उसकी सुबह अब तक
                      शाम से अलग नहीं हो सकी है ?
०००

ठण्डे लोहे पर टँगी
काठ की घण्टियों के सहारे
आँगन के पार द्वार
कठपुतली उर्वशी का यह नाटक
                      आख़िर कब तक जारी रहेगा ?
००

आत्महत्या के लिए सबसे माकूल वक़्त तब होता है
जब रौशनी से अन्धकार का फ़र्क़ मिट जाता है
बोल, फिर क्या बात है — आत्महत्या कर लेगी ?
या अन्धेरे से घबराया हुआ कोई हाथ बढ़कर
                                तेरा गला दबोच लेगा ?
छिपकर कहाँ रहेगी ?
 
आज सारा हिन्दुस्तान चवरी है
जिसके हिस्से से रौशनी ग़ायब है ।