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स्वातंत्र्य-झंझावात / महेन्द्र भटनागर

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चल रहा है वेग से स्वातंत्र्य-झंझावात,
आज जन-जन की पुकारें — अग्नि की बरसात,
आज जनबल की दहाड़ें — मृत्यु का आघात !

दासता की शृंखलाएँ तोड़ देंगे आज,
घोर प्रतिद्वन्द्वी हवाएँ मोड़ देंगे आज,
निज निराशा, फूट, जड़ता छोड़ देंगे आज !

रक्त-रंजित लाल आँखें माँगतीं प्रतिशोध,
ख़ून का बदला मनुज-बल चाहता भर क्रोध,
चाहता जब नाश, कैसा आज लघु-अवरोध ?

चीरती गिरि से चली है तीर-सी जो धार;
म्यान से बाहर निकल ज्यों विकल हो तलवार,
देख जिसको भीत शोषक-वर्ग अत्याचार !

झुक नहीं सकते हजारों व्यक्तियों के शीश,
झुक नहीं सकते हज़ारों नारियों के शीश,
झुक नहीं सकते हज़ारों बालकों के शीश !

रुक नहीं सकते चरण दृढ़ द्रोहियों के आज,
मिट नहीं सकते दमन की आँधियों से आज,
इन्क़लाबी स्वर दबे कब साथियों के आज ?