भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाबा है पाखण्डी / राकेश रंजन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:10, 15 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> लिए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
लिए हाथ में कण्ठी-माला
माथे तिलक लगाए
चम्पू चूहे के दरवाज़े
बिल्ला बाबा आए
बाबा बोले, मैं दुनिया में
प्रकट हुआ हूँ ताज़ा
चम्पू राजा, तुझे मुफ़्त में
स्वर्ग दिखा दूँ आ जा
बाबा के पैरों में गिरकर
चम्पू चूहा बोला
स्वर्ग दिखा दो बाबा, तेरा
ढोऊँगा मैं झोला
चम्पू का माथा सहलाकर
बाबा बोले, बच्चा
आ चल तुझको स्वर्ग दिखा दूँ
भगत बड़ा तू सच्चा
'बाबाजी की जय हो' कहता
चम्पू चला कुदकता
स्वर्ग देखने की ख़्वाहिश में
आसमान को तकता
तभी ठहरकर बाबा बोले
अब यह करना होगा
स्वर्ग देखना है तो बच्चा
तुझको मरना होगा
बाबा मन्तर पढ़कर बोले
ओम फटिक्कम् म्याऊँ
शुभ कारज में देर नहीं हो
आ जा तुझको खाऊँ
अरे बाप रे, चूहा भागा
उठा पूँछ की झण्डी
पत्रकार से जाकर बोला
बाबा है पाखण्डी !