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मुक्ति की पुकार / महेन्द्र भटनागर
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बद्ध कंठ से सशक्त मुक्ति ही पुकार !
धैर्य पूर्ण उर सबल
लक्ष्य ओर दृढ़ चरण
व्यर्थ नाश-शस्त्र सब
व्यर्थ क्रूरता दमन
झुक सका न शीश, मिल सकी न क्षणिक हार !
अंध छा गया सघन
आज पर्व है प्रलय
राजनीति का कुहर
भर गया सहज निलय
तोड़-फोड़ सृष्टि-नाट्य ध्वस्त तार-तार !
तीव्र सिंह से गरज
मेघ से विशाल बन
चल पड़े निशंक सब
विश्व के नवीन जन
लाल-लाल सब जहान का बना सिँगार !