भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक्ति की पुकार / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:59, 19 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= टूटती शृंखलाएँ / महेन्द्र भट...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बद्ध कंठ से सशक्त मुक्ति ही पुकार !

धैर्य पूर्ण उर सबल
लक्ष्य ओर दृढ़ चरण
व्यर्थ नाश-शस्त्र सब
व्यर्थ क्रूरता दमन
झुक सका न शीश, मिल सकी न क्षणिक हार !

अंध छा गया सघन
आज पर्व है प्रलय
राजनीति का कुहर
भर गया सहज निलय
तोड़-फोड़ सृष्टि-नाट्य ध्वस्त तार-तार !

तीव्र सिंह से गरज
मेघ से विशाल बन
चल पड़े निशंक सब
विश्व के नवीन जन
लाल-लाल सब जहान का बना सिँगार !