अहमक लड़की / समृद्धि मनचन्दा
1.
तुम दो चुटकी धूप
और एक मुश्त रात का
नरम टुकड़ा हो
तुम हो स्थगित उल्लास 
और गहन उदासियों का
वनचर गीत
तुम फूलों के लावण्य
और मेघों की तितिक्षा से
प्रोत नदी हो
तुम किसी त्रासदी में
कल्पना का हस्तक्षेप हो
किसी तन्द्रा का अस्ताचल
तुम तथागत का उपदेश
मीरा का गीत
शिव का तीसरा नेत्र हो
अहमक लड़की 
तुम हो ! 
तुम कहो ! 
तुम अहो ! 
2.
कई इष्ट एकसाथ रूठे थे उससे
पितृदोष भी था
राहू कटे चान्द भी
पर वो भी कहाँ मनाने वाली थी ! 
सो कागों को चुग्गा डाल देती
अपनी अधलिखी आँखें
और नदियों को अर्घ्य देती
अँजुरी भर आँच
उफ़्फ़, वो अहमक लड़की ! 
बस एक ही सनक थी उसे 
’अपनी शर्त पर जीना’
वही शर्त जो सदियों से
भारी पड़ती आई है 
वो जानती थी
बे-खटका लड़की होना
नसीब से नहीं जूझ से मिलता है
तो सबसे लड़ जाती 
अपने आप से सबसे ज़्यादा
अड़ियल लड़कियाँ जानती हैं लानतों का बोझ !
 
	
	

