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परिवर्तन / टूटती शृंखलाएँ / महेन्द्र भटनागर

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दुनिया का कण-कण परिवर्तित
गूँजा जीवन-संगीत नवल,
प्रतिक्षण सुंदरतर निर्मिति हित
है व्यस्त सतत जन-जन का बल !

सदियों का सोया जागा है
युग-मानव नव बन आया है,
जल जाएगा विश्व अशिव सब
यह अनबुझ ज्वाला लाया है !

मिथ्या विश्वासों के शव पर
नव-संस्कृति-ज्वाला रही बिखर,
पिछड़ी सोयी मानवता के
नयनों में नव-आलोक प्रखर !

आँसू, लूट, नाश का निर्मम
रक्तिम, वहशी इतिहास गया,
क्षत-विक्षत जग के आँगन का
होता अब तो निर्माण नया !