भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहावली / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:49, 28 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा 'बिन्दु'...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुओं की तकरार से,बिगड़ा घर संसार
पिता कलह से मर गये, मात पड़ी बीमार।
अनबन भाई में हुआ, और बँटा घर द्वार
माँ बेचारी रो पड़ी, देख टूटता प्यार।
खड़ी हुई दीवार तो, माँ हिस्से में कौन
रहे देखते लोग सब, मातम में सब मौन।
बेटा हुआ कपूत तो, माँ को देखे कौन
ममता – माया सब गई,रिश्तों में सब गौण।
दीदी भाभी और बहु, तीनों माँ के रूप
जैसे प्यासे को मिले , भरे हुए जल कूप।