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फ़ासला / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’

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दूर था जो फ़ासला
अब नजदीक हो रहा।
रिश्तों के बीच प्यार
अब ये ठीक हो रहा।
लोग सभी समझ रहे
अब ये नीक हो रहा।
अब रही ना दूरियाँ
साथ शरीक हो रहा।
मिट रही ये रंजिशें
सत्य प्रतीक हो रहा।
शिक्षा ये संस्थान से
समय निर्भीक हो रहा।
जागरुक हम बन रहे
दुष्ट शफ़ीक़ हो रहा।