एक गीत / मिरियम वेडर / अनिल जनविजय
ये दिन बीत रहे हैं मेरे बेहद सुख से
गुज़र रहे हैं सड़कों के ऊपर और नीचे,
ख़ुशी झलके है जंगली झबरी हवा के मुख पे
भूरी पहाड़ियों को जो आलिंगन में भींचे ।
खानाबदोश बन गई थी मैं भी आज दिनभर
मस्ती कर रही थी मैं खानाबदोश बनकर ।
लेकिन ज्यों-ज्यों शाम ढलने को आई
ऊपर आकाश के चेहरे पर फैल गई लुनाई,
जब विलक्षण ढंग से पीले लट्टू मुस्कुराए
हर खिड़की से झाँककर सुन्दरता झलकाएँ,
जब रात घिर आई, छोड़ा मैंने खानाबदोशी बाना
मन में थी मेरे नन्हें से घर और रोशनी की चाहना ।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए अब मूल अँग्रेज़ी में यह कविता पढ़िए
Miriam Vedder
A SONG
DAYS, I go very gayly
Up the roads and down,
Glad that the wind is shaggy and wild,
Glad that the hills are brown.
A very gipsy I am, by day,
Adventuring quite in a gipsy way.
But when the dusk comes drifting
Across the tall sky's face,
When yellow lamps smile quaintly out
From every window-place, --
No gipsy at all am I, at night,
Wanting my own little house and light.