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सावन के सहनइया / मगही
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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सावन के सहनइया भदोइया के किचकिच हे, सुगा-सुगइया के पेट, वेदन कोई न जानये हे।
सुगा-सुगइया के पेट, कोइली दुःख जानये हे, एतना वचन जब सुनलन, सुनहूँ न पयलन हे।
पकी दिहले हथवा कुदारी बबूर तर हे, डाँड़ मोरा फाटहे करइलो जाके, ओटियो चिल्हकि मारे हे।
राजा का कहूँ दिलवा के बात, धरती अन्हार लागे हे।