भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखें तो सही / जगदीश जोशी / क्रान्ति कनाटे

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:23, 2 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश जोशी |अनुवादक=क्रान्ति कना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रथम मेघ को देखकर
यक्ष को हुई थी अकुलाहट
पर आज
तुम्हारे सान्निध्य में मुझे क्यों हो रही है अकुलाहट ?

ओंठ में छटपटा रहे हैं शब्द ।

पेड़ के झरोखे में खड़े-खड़े
हवा
प्रतीक्षा कर रही है ।

बादल घिर आए हैं
अब हम बिछड़ जाएँ तो अच्छा ।

हिमगिरि से अलका की राह पर
देखेँ तो सही कि
हमारे पदचिन्ह हैं कि नहीं ?

मूल गुजराती से अनुवाद : क्रान्ति कनाटे