कविता - 6 / योगेश शर्मा
जब पीला पड़ जाएगा सब कुछ,
यथार्थ जब बंजर जमीन सा होगा,
तब भी हरी रहेंगी कविताएँ।
तुम्हारे हृदय के सबसे गहरे तल पर फैले घने अंधरे में
प्रकाश पुंज की तरह उभरेंगी
तुम्हारे मष्तिष्क की सबसे शुष्क जगह को
सिंचित करेंगी।
दो कहानियों को जोड़ती हैं कविताएँ
"पुल की तरह भी और खाई की तरह भी"
(उपरोक्त पंक्ति गीत चतुर्वेदी की कविता की पंक्तियों से प्रेरित)
देहान्त में देह का अंत होता है
कविताओं की देह नही होती,
कविताओं के अंत के लिए कोई शब्द नही।
कितने पाठक हैं जो तकलीफ चाहते हैं
कविता के सृजन का आधार 'तकलीफ' मानकर।
अब कितने पाठक होंगे
जो तकलीफ नही किताबें चाहेंगे।
कितने शब्द हैं
जो कहानियाँ बनते बनते
कविता बन गए अनायास ही।
एक विडम्बना है
कि सब कुछ देखने वाली आँखें
अपने ठीक सामने पलकों को नही देख सकती।
कविताएँ कहानियों में से उग आती हैं
और कहानियाँ कविताओं के आँचल में पलती हैं
आखिर,
हर कवि एक कहानी ही तो होता है।
कल्पनाएँ कितनी अच्छी और मौन होती हैं।
इतनी अच्छी की तुम्हारे होने की कल्पना
तुम्हारे होने से अधिक सुंदर लगती है।
और इतनी मौन की कभी किसी ने
महसूसा ही नही उसे।
मौन होना दरअसल समय के साथ संवाद है।