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कविता - 20 / योगेश शर्मा
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कभी कभी
बाहर भीतर,
जब देखता हूँ
किसी को साइकिल पर जाते हुए
अपनी दिन की रोजी कमाने के लिए
तो ख्याल आता है
कि क्या, इनके लिए कुछ मायने होंगें?
आकर्षण के सिद्धांत के।
या उन मोटी मोटी किताबों के,
जिनमे जीने के सलीके लिखें हैं...
महान दार्शनिकों ने।
या फिर उन बड़ी बड़ी बैठकों के,
जो बड़े विकसित देशों में सामान्यतः होतीं हैं
आम आदमी के जीवन के स्तर को
बढ़ाने के लिए या ऊँचा करने के लिए।
अगर नही!
तो फिर इनके लिए
'मायने' क्या रखता है आखिर!
गुज़रा हुआ कल या आने वाला?
नही, शायद कुछ भी नही।
यदि, कुछ इनके लिए मायने रखता है तो,
सम्भवतः
रात को पेट भर के सोना।