अमेरिका / वाल्ट ह्विटमैन / दिनेश्वर प्रसाद
मैं अमेरिका को गाते हुए सुनता हूँ,
मैं भिन्न-भिन्न प्रकार के आनन्दगीत सुनता हूँ
मैकेनिकों के गीत, जिसमें हर एक वही गीत गाता है,
जो उल्लासपूर्ण और ओजस्वी होता है ।
बढ़ई अपना गीत गाते हुए, जब वह काम के लिए तैयार होता
या काम ख़त्म करता है,
नाविक गाते हुए कि उसकी नाव पर क्या-क्या उसका है,
डेककर्मी स्टीमर के डेक पर गाते हुए, जब वह खड़ा रहता है,
लकड़हारे का गीत, भोर में अपनी राह चलते हुए, या दोपहर के अवकाश या
सूर्यास्त के समय हलवाहे का गीत, माँ का मधुर-मधुर गीत,
या काम करते समय युवा पत्नी का या सिलाई करते या कपड़ा धोते समय
नौकरानी का गीत, हर एक वह गाते हुए जो उसका अपना है,
किसी और का नहीं,
दिन गाते हुए उसको जो दिन का है - रात में तगड़े दो युवाओं की मुँह
खोलकर अपने ओजस्वी सुरीले गीत ।
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : दिनेश्वर प्रसाद
लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
Walt Whitman
I Hear America Singing
I hear America singing, the varied carols I hear,
Those of mechanics, each one singing his as it should be blithe and strong,
The carpenter singing his as he measures his plank or beam,
The mason singing his as he makes ready for work, or leaves off work,
The boatman singing what belongs to him in his boat, the deckhand singing on the steamboat deck,
The shoemaker singing as he sits on his bench, the hatter singing as he stands,
The wood-cutter’s song, the ploughboy’s on his way in the morning, or at noon intermission or at sundown,
The delicious singing of the mother, or of the young wife at work, or of the girl sewing or washing,
Each singing what belongs to him or her and to none else,
The day what belongs to the day—at night the party of young fellows, robust, friendly,
Singing with open mouths their strong melodious songs.